जैसे आप किसी के प्रेम में पड़ जाते हैं, कोई
तर्क नहीं होता। और अगर कोई तर्क करने चले, तो आप सिद्ध न कर पाएंगे कि आपके प्रेम का कारण क्या है। और जो भी बातें आप कहेंगे, वस्तुत: असार होंगी। जैसे आप कहेंगे कि जिस व्यक्ति को मैं प्रेम करता हूं वह बहुत सुंदर है। लेकिन किसी और को वह सुंदर मालूम नहीं पड़ता, बस आपको ही मालूम पड़ता है। सचाई कुछ उलटी है। आप, सुंदर है इसलिए प्रेम करते हैं, ऐसा नहीं है। आप प्रेम करते हैं, इसलिए वह व्यक्ति सुंदर दिखाई पड़ता है। आपके प्रेम ने ही उसे सुंदर बना दिया है। सौंदर्य कोई वस्तुगत घटना नहीं है, आपके हृदय का भाव है। हम सुंदर को प्रेम नहीं करते हम जिसे प्रेम करते हैं, वह सुंदर हो जाता है। प्रेम हर चीज को सुंदर कर देता है।
तर्क नहीं होता। और अगर कोई तर्क करने चले, तो आप सिद्ध न कर पाएंगे कि आपके प्रेम का कारण क्या है। और जो भी बातें आप कहेंगे, वस्तुत: असार होंगी। जैसे आप कहेंगे कि जिस व्यक्ति को मैं प्रेम करता हूं वह बहुत सुंदर है। लेकिन किसी और को वह सुंदर मालूम नहीं पड़ता, बस आपको ही मालूम पड़ता है। सचाई कुछ उलटी है। आप, सुंदर है इसलिए प्रेम करते हैं, ऐसा नहीं है। आप प्रेम करते हैं, इसलिए वह व्यक्ति सुंदर दिखाई पड़ता है। आपके प्रेम ने ही उसे सुंदर बना दिया है। सौंदर्य कोई वस्तुगत घटना नहीं है, आपके हृदय का भाव है। हम सुंदर को प्रेम नहीं करते हम जिसे प्रेम करते हैं, वह सुंदर हो जाता है। प्रेम हर चीज को सुंदर कर देता है।