Wednesday, June 29, 2011

जीने के इशारे मिल गए, बिछड़े थे किनारे मिल गए |

कुछ  खुशबुएँ , यादों  के  जंगल  से  बह  चली  
कुछ  खिड़कियाँ, लम्हों  के  दस्तक  पे  खुल  गयी 
कुछ  गीत  पुराने  रखे  थे  सिरहाने 
कुछ  सुर  कहीं  खोये  थे  बंदिश  मिल  गए 


जीने  के  इशारे  मिल  गए  
बिछड़े  थे  किनारे  मिल  गए 

मेरी  ज़िन्दगी  मैं  तेरी  बारिश  क्या  हुई  
मेरे  रस्ते  दरया  बने  बहने  लगे 
मेरी  करवटों  को  तुने  आके  क्या  छुआ 
कहीं  ख्वाब  नींदों  की  गली  रहने  लगे 

जीने  के ...किनारे  मिल  गए 

मेरी  लोह  हवाओं  से  झगड़कर  ली  उठी 
मेरे  हर  अँधेरे  को  उजाले  पी  गए 
तुने  हस्कें  मुझसे  मुस्कुराने  को  कहा 
मेरे  मन  के  मौसम  गुलमोहर  से  हो  गए 

जीने  के ...किनारे  मिल  गए 

कुछ  खुशबुएँ , साँसों  से  साँसों  में  घुल  गयी 
कुछ  खिदिक्याँ , आँखों  ही  आँखों  में  खुल  गयी  
कुछ  प्यास  अधूरी 
कुछ  श्याम  सिंधूरी  
कुछ  रेशमी  गुनाहों  
मैं  रेट  ढल  गए  
जीने  के  इशारे  मिल  गए 
बिछड़े  थे  किनारे  मिल  गए 

No comments:

Post a Comment

हर गडी बदल रही रूप जिन्दगी...