Wednesday, June 29, 2011

खुल के मुस्कुराले तू दर्द को शर्माने दे

खुल  के  मुस्कुराले  तू  दर्द  को  शर्माने  दे 
बूंदों  को  धरती  पर  साज़  एक  बजाने  दे  

हवाएं  कह  रही  हैं , आजा  झूलें  ज़रा  
गगन  के  गाल  को  जाके  चूलें  ज़रा 
उतार  ग़म  के  मोजे , ज़मीन  को  गुनगुनाने  दे  
कंकरों  को  तलवों  मैं  गुदगुदी  मचाने  दे  
खुल  के  मुस्कुराले ...साज़  एक  बजाने  दे 

झील  एक  आदत  है , तुझमे  ही  तो  रहती  है 
और  नदी  शरारत  है , तेरे  संग  बहती  है 
हर  लहर  यह  कहती  है , खुद  को  झूम  जाने  दे 
ज़िन्दगी  को  आज  नया  गीत  कोई  गाने  दे 

बांसुरी  की  खिद्क्यों  पे  सुर  यह  क्यों  थिथाकतेय  हैं  
आंख  के  समंदर  क्यों  बेवजह  चलाक्तेय  हैं  
तितल्याँ  यह  कहती  हैं  अब  बसंत  आने  दे 
जंगलों  के  मौसम  को  बस्तियों  में  छाने  दे . 

खुल  के  मुस्कुराले ...साज़  एक  बजाने  दे 

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हर गडी बदल रही रूप जिन्दगी...