Thursday, July 28, 2011

अंतर्भाव

जय जय सद्गुरू समर्था | जय जया पूर्ण मनोरथा |
चरणी ठेउनिया माथा | प्रार्थितसे ||
मी येक संसारी गुंतला | स्वामीपदी वियोग जाला |
तेणे गुणे आळ आला |मज मीपणाचा ||
इच्छाबंधने गुंतलो | तेणे गुणे अंतरलो |
आता तेथूनि सोडविलो | पाहिजे दातारे ||
प्रपंच संसार उद्वेगे |क्षणक्षण मानस भंगे |
कुळाभिमान म्हणे उगे | सामाधानासी ||
तेणे समाधान चळे | विवेक उडोनिया पळे |
बळेची वृत्ती ढांसाळे | संगदोषे ||
स्वामी प्रपंचाचे नि गुणे | परमार्थासी आले उणे |
ईश्वर आज्ञेप्रमाणे | क्रिया न घडे ||
याचिया दु:खे झोंका आदळे चित्ती | समाधान राखणे किती |
विक्षेप होता चितोवृत्ती | दंडळू लागे ||
प्रपंचे केले कासावीस | होउ नेदी उमस |
तेणे गुणे उपजे त्रास | सर्वत्राचा ||
आता असो हा संसार | जाले दु:खाचे डोंगर |
स्वामी अंतसार्क्ष विचार | सर्व हि जाणती ||
तरी आता काय जी करावे | कोण्या समाधाने असावे |
हे मज दातारे सांगावे | कृपा करावी ||
ऐसी शिष्याची करुणा | ऐकोनी बोले गुरुराणा |
केली पाहिजे विचारणा | पुढिलीये समासी ||

No comments:

Post a Comment

हर गडी बदल रही रूप जिन्दगी...