Thursday, July 28, 2011

अंतर्भाव

प्राप्त जाले ब्रह्मज्ञान | आंगी बाणले पाहिजे पूर्ण |
म्हणोनि हे निरुपण | सावध ऐका ||
कांहीच नेणे तो बध्द | समूळ क्रिया अबध्द |
भाव उठिला तो शुध्द | मुमुक्षु जाणावा ||
कर्मे तजून बाधक | शुध्द वर्ते तो साधक |
क्रिया पालटे विवेक | पाहे नीच नवा ||
तये क्रियेचे लक्षण | आधी स्वधर्म रक्षण |
पुढे अद्वैत श्रवण | केले पाहिजे ||
नित्य नेम दृढ चित्ती | तेणे शुध्द चीतोवृत्ती |
होउनिया भगवंती | मार्ग फुटे ||
नित्य नेमे भ्रांति फिटे | नित्य नेमे सदेह तुटे |
नित्य नेमे लिगटे | समाधान अंगी ||
नित्य नेमे अंतर शुध्द | नित्य नेमे वाढे बोध |
नित्य नेमे बहु खेद | प्रपंची नुठी ||
नित्य नेमे सत्व चढे | नित्य नेमे शांती वाढे |
नित्य नेमे मोडे | देहबुद्धी ||
नित्य नेमे दृढभाव | नित्य नेमे भेटे देव |
नित्य नेमे पुसे ठाव | अविद्येचा ||
नित्य नेम करू कोण | ऐसा शिष्ये केला प्रश्न |
केले पाहिजे श्रवण | प्रत्ययी स्वयें ||
मानसपूजा जप ध्यान | येकाग्र करूनिया मन |
त्रिकाळ घ्यावे दर्शन | मारुती सूर्याचे ||
हरिकथा निरुपण | प्रत्यई करावे श्रवण |
निरूपणी उणखूण | केली पाहिजे ||
संकटी श्रवण न घडे | बळात्कारे अंतर पडे |
तरी अंतरस्थिती मोडे | ऐसे न कीजे ||
अंतरी पांच नामें | म्हणत जावी नित्य नेमे |
ऐसे वर्तता भ्रमे | बाधिजेना ||
ऐसी साधकाची स्थिती | साधके राहावे ऐसिया रिती |
साधनेवीण ज्ञानप्राप्ती |होणार नाही ||
तव शिष्य म्हणे जी ताता | जन्म गेला साधन करता |
कोण वेळ आता | पावो समाधान ||
कैसे येईल सिद्धपण | केव्हा तुटेल साधन |
मुक्त दशा सुलक्षण | मज प्राप्त केवी ||
आता याचे प्रत्योत्यर | श्रोती व्हावे सादर |
ऐका पुढे विस्तार | सांगिजेल ||
इति श्री अंतर्भावं | जन्ममृत्यू समूळ वाव |
रामदासी गुरुराव |प्रसन्न जाला ||

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हर गडी बदल रही रूप जिन्दगी...