Thursday, May 2, 2013

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई... जैसे अहसान उतारता है कोई


जो भी बुरा भला है भगवान  जानता है,
बंदे के दिल में क्या है भगवान जानता है।
ये फर्श-ओ-अर्श क्या है भगवान जानता है,
पर्दों में क्या छिपा है 
भगवान जानता है।
जाकर जहाँ से कोई वापस नहीं है आता,
वो कौन सी जगह है 
भगवान जानता है
नेक़ी-बदी को अपने कितना ही तू छिपाए,भगवान को पता है भगवान जानता है।
ये धूप-छाँव देखो ये सुबह-शाम देखो
सब क्यों ये हो रहा है 
भगवान जानता है।
क़िस्मत के नाम को तो सब जानते हैं लेकिन
क़िस्मत में क्या लिखा है 
भगवान जानता है।


दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे अहसान उतारता है कोई।
आईना दिख के तसल्ली हुई
हमको इस घर में जानता है कोई।
फक गया है सज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई।

फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुमको शायद मुग़ालता है कोई।
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हमको पुकारता है कोई।


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हर गडी बदल रही रूप जिन्दगी...